Kehta Hai Sindoor Tera

धूल तेरे चरणों की छू कर
अपनी माँग मैं भरती हूँ
नारी नहीं तू देवी है
मैं तेरी पूजा करती हूँ

कहता है सिंदूर तेरा
तेरी बिंदिया कहती है
कहता है सिंदूर तेरा
तेरी बिंदिया कहती है

लाखों में कोई एक सुहागन
लाखों में कोई एक सुहागन
सदा सुहागन रहती है

कहता है सिंदूर तेरा
तेरी बिंदिया कहती है
लाखों में कोई एक सुहागन
सदा सुहागन रहती है
कहता है सिंदूर तेरा

पति की सेवा की ऐसे
कि पति को परमेश्वर माना
पति की सेवा की ऐसे
कि पति को परमेश्वर माना

बेटी और बहु में तूने कोई अंतर ना जाना
तेरी सूरत देख के हमने
तो भगवान को पहचाना
तू सबको सुख देती है
तू हम सब के दुख सहती है

लाखों में कोई एक सुहागन
लाखों में कोई एक सुहागन
सदा सुहागन रहती है

कहता है सिंदूर तेरा
तेरी बिंदिया कहती है
लाखों में कोई एक सुहागन
सदा सुहागन रहती है
कहता है सिंदूर तेरा

तूने दर्पण में मुख देखा
तो दर्पण ये कहता है
तूने दर्पण में मुख देखा
तो दर्पण ये कहता है

तू स्वयं दर्पण है जिसे
हर कोई देखता रहता है
तेरे होंठों से मुसकानों का यूँ झरना बहता है
शंकर जी की जटा से जैसे
गंगा मैया बहती है

लाखों में कोई एक सुहागन
लाखों में कोई एक सुहागन
सदा सुहागन रहती है

कहता है सिंदूर तेरा
तेरी बिंदिया कहती है
लाखों में कोई एक सुहागन
सदा सुहागन रहती है
कहता है सिंदूर तेरा
तेरी बिंदिया कहती है



Credits
Writer(s): Anand Bakshi, Laxmikant Kudalkar, Sharma Pyarelal
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