Phir Saawan Rut Ki Pawan

जब ग़ज़ल गाने वाला ग़ज़ल के अंग से वाक़िफ़ हो
तो नासिर क़ाज़मी उसके लहज़े में ख़ुद-ब-ख़ुद ढलता जाता है
फ़िर गूँजे बोली घास के हरे समंदर में
रुत आई पीले फूलों की, तुम याद आये
मुन्नी बेगम से सुनिये

फ़िर सावन रुत की पवन चली, तुम याद आये
फ़िर सावन रुत की पवन चली, तुम याद आये
फ़िर पत्तों की पाजेब बजी, तुम याद आये
फ़िर पत्तों की पाजेब बजी, तुम याद आये
फ़िर सावन रुत की पवन चली, तुम याद आये

फ़िर गूँजे बोली घास के हरे समंदर में
फ़िर गूँजे बोली घास के हरे समंदर में
रुत आई पीले फूलों की, तुम याद आये
रुत आई पीले फूलों की, तुम याद आये
फ़िर सावन रुत की पवन चली, तुम याद आये

फ़िर कागा बोला घर के सूने आँगन में
फ़िर कागा बोला घर के सूने आँगन में
फ़िर अमृत रस की बूँद पड़ी, तुम याद आये
फ़िर अमृत रस की बूँद पड़ी, तुम याद आये
फ़िर सावन रुत की पवन चली, तुम याद आये

दिन भर तो मैं दुनिया के धंधों में खोया रहा
दिन भर तो मैं दुनिया के धंधों में खोया रहा
जब दीवारों से धूप ढली, तुम याद आये
जब दीवारों से धूप ढली, तुम याद आये
फ़िर सावन रुत की पवन, चली तुम याद आये
फ़िर पत्तों की पाजेब बजी, तुम याद आये
फ़िर सावन रुत की पवन चली, तुम याद आये
तुम याद आये



Credits
Writer(s): Munni Begum
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