Musafir

मौसम के बदलते हर रूप में
और बारिशों की हर बूँद में
हर ख़्वाहिश में, हर चाह में
तुम ज़िंदगी की हर राह में

क्यूँ बन गया मैं मुसाफ़िर तेरे प्यार में?
कब तक जियूँ तू बता दे, तेरे इंतज़ार में

शीशे में दिखती तेरी परछाइयाँ
कहती हैं मुझसे ये तन्हाइयाँ
ओ-ओ, शीशे में दिखती तेरी परछाइयाँ
कहती हैं मुझसे ये तन्हाइयाँ

हर सफ़र में, साथी, तेरा साथ हो
ये आरज़ू मुझे दिन-रात हो
हर सफ़र में, साथी, तेरा साथ हो
ये आरज़ू मुझे दिन-रात हो
ना दिन ढले, ना कभी ये शाम हो
मैं भीग जाऊँ, कभी ऐसी बरसात हो

क्यूँ बन गया मैं मुसाफ़िर तेरे प्यार में?
कब तक जियूँ तू बता दे, तेरे इंतज़ार में



Credits
Writer(s): Kabir Athar, Kabir Ahmed Khan
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