Nuskha Tarana

ज़िंदगी भर ज़िंदगी से हारी-हारी
ख़्वाबों ने भी माफ़ी माँगी बारी-बारी
बेज़ुबानों सी इन दुकानों सी भरती रही
आँधियों से पर चिंगारी कभी डरती नहीं

आज भी ढूँढ रहा है पंछी को दाना
मन में चला के ये नुस्ख़ा तराना
ज़िंदगी को घुँघरुओं से लगाए चल तू

एक काले रेशम के पिंजरे में ज़िंदा थी
शर्मिंदा थी, शर्मिंदा थी
चुभती दवाओं, दुआओं से कहीं बड़ी दूर हूँ छुपी
बड़ी देर हो चुकी

ढूँढ रहा है पंछी को दाना
मन में चला के ये नुस्ख़ा तराना
ज़िंदगी को अपनी धुन पे नचाए चल तू



Credits
Writer(s): Majaal, Kanish Sharma
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