Safar

ये कैसा सितम है, सफ़र में खड़ा हूँ
हमारे ही मैं दरमियाँ
तुम्हारी कमी है, तुम्हारी कमी है
तुम्हारी कमी है यहाँ

भीड़-भाड़ में गुम शहर में किसी गाँव सी
तू ज़रा-ज़रा धूप सी है, कभी छाँव सी

जुदा तुम हुई हो, जुदा हो गई हैं
बदन से ये परछाइयाँ
तुम्हारी कमी है, तुम्हारी कमी है
तुम्हारी कमी है यहाँ

चिराग़ों को छू कर बदलती नहीं है
हवाओं की फ़ितरत कभी
मगर ये भी सच है कि बुझने से बुझती
नहीं है मोहब्बत कभी

जल रहा हूँ या बुझ गया हूँ, पता ही नहीं
उड़ रहा हूँ या गिर रहा हूँ, पता ही नहीं

चलो, लौट आओ, कहीं जान ले-ले
ना तेरी ये शैतानियाँ
तुम्हारी कमी है, तुम्हारी कमी है
तुम्हारी कमी है यहाँ

बिखरते-बिखरते हमें चूर होने में
आने लगा है मज़ा
बिखरते-बिखरते हमें चूर होने में
आने लगा है मज़ा
ये साँसों का चलना, ये दिल का धड़कना
नहीं इसमें मेरी रज़ा

दर्द चाहता है, निजात दवा से मिले
इस दफ़ा चिराग़ हवा को रिझाते मिले

ये कैसा सितम है, सफ़र में खड़ा हूँ
हमारे ही मैं दरमियाँ
तुम्हारी कमी है, तुम्हारी कमी है
तुम्हारी कमी है यहाँ



Credits
Writer(s): Anant Gupta, Usman Shaikh
Lyrics powered by www.musixmatch.com

Link