Ae Zindgi

ऐ जिन्दगी कुछ कर्ज़ का सहारा देदे
लिखने का कुछ मकसद फिर दोबारा देदे
बैठे है लफ्ज़ खामोश कई अरसों से
सबब इनको जो लगे गवारा देदे

वही नही सही पर उस जैसे
लम्हे कुछ मुझे दोबारा देदे
सुबक बैठा है दिल एक कोने मे जाकर
फितरत इसे फिर वही आवारा देदे

शब्दों का फ़र्क या लकीरों की खता
लेखा-जोखा ज़रा जिंदगी हमारा देदे
ठहरे खुशी ज़रा वक़्त दो पाकर
सलीके ऐसे कुछ ज्यादा देदे

खुदा नही पर खुद सा तो
हमसफर-ए -वक़्त हमारा देदे
मंजूर होगी मौत भी जो तू बख्शे
पर पहले जीने का ज़रा इरादा देदे
पर पहले जीने का ज़रा इरादा देदे



Credits
Writer(s): Rita Haig, Rohit 'katib'
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