Shor Se Pare

किनारों के ख़्वाब सा
फ़िरूँ मैं बदनाम सा
चलता हूँ लेकर मेरी नज़रों में कहीं
बाज़ी शय है, मगर, वो मात नहीं

इस शोर से परे जो दुनिया है वो कहीं
ढूँढूँ मैं वहीं फ़साना पुराना कोई

फ़साना पुराना कोई
फ़साना पुराना कोई

अलबेले बैराग सा
कहूँ जो भी, बे-नाम सा
चलता हूँ लेकर मेरी नज़रों में कहीं
बाज़ी शय है, मगर, वो मात नहीं

इस शोर से परे जो दुनिया है वो कहीं
ढूँढूँ मैं वहीं फ़साना पुराना कोई

फ़साना पुराना कोई
फ़साना पुराना कोई

जो कल मोड़ पे मिले थे, दिखे थे
जो कल तक थे हमराह क्यूँ?
अब हैं गुम, लापता

मंज़िल रेत या धुआँ है?
है क्या ये हक़ीक़त या सब है नशा?
ख़ुद को ढूँढूँ कहाँ?

इस शोर से परे जो दुनिया है वो कहीं
मिल जाए वो मुझे, हो कामिल मेरी ज़िंदगी

फ़साना पुराना कोई
फ़साना पुराना कोई
फ़साना पुराना कोई
फ़साना पुराना कोई



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