Tu Gandi

तू गंदी अच्छी लगती है
तू बंदी अच्छी लगती है
तू कली सी कच्ची...
तू तली सी मच्छी लगती है

तू गंदी अच्छी लगती है
तू बंदी अच्छी लगती है
तू कली सी कच्ची...
तू तली सी मच्छी लगती है

मैं सात जनम उपवासा हूँ
और सात समंदर प्यासा हूँ
जी भर के तुझको पी लूँगा

तू गंदी अच्छी लगती है
तू गंदी अच्छी लगती है
तू बंदी अच्छी लगती है
तू कली सी कच्ची...
तू तली सी मच्छी लगती है

मैं ना जानूँ क्या शर्म-हया
तुझे जान के मैं सब भूल गया
जो कहते हैं ये कुफ़ूर ख़ता
काफ़िर क्या हैं, उनको क्या पता

मैं ना जानूँ क्या शर्म-हया
तुझे जान के मैं सब भूल गया
जो कहते हैं ये कुफ़ूर ख़ता
काफ़िर क्या हैं, उनको क्या पता

तू गंदी अच्छी लगती है
तू बंदी अच्छी लगती है
तू कली सी कच्ची...
तू तली सी मच्छी लगती है

सच-सच मैं बोलने वाला हूँ
मैं मन का बेहद काला हूँ
तेरे रंग में मन रंग लूँगा

तू रंगी अच्छी लगती है
तू सच्ची अच्छी लगती है
तू अच्छी-अच्छी लगती है
तू झूठी...

तू रूठी अच्छी लगती है
तू गंदी अच्छी लगती है
तू बंदी अच्छी लगती है
तू कली सी कच्ची...
तू तली सी मच्छी लगती है

तू कली सी कच्ची...



Credits
Writer(s): Dibakar Banerjee
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