Ramchandra Keh Gaye Siya Se
हे जी रे, हे जी रे
हे जी रे, हे जी रे
रामचंद्र कह गए सिया से
रामचंद्र कह गए सिया से ऐसा कलयुग आएगा
हंस चुगेगा दाना-दुनका
हंस चुगेगा दाना-दुनका, कौआ मोती खाएगा
हंस चुगेगा दाना-दुनका, कौआ मोती खाएगा
हे जी रे, हे जी रे
रामचंद्र कह गए सिया से
रामचंद्र कह गए सिया से ऐसा कलयुग आएगा
हंस चुगेगा दाना-दुनका
हंस चुगेगा दाना-दुनका, कौआ मोती खाएगा
हंस चुगेगा दाना-दुनका, कौआ मोती खाएगा
अरे, रामचंद्र कह गए सिया से...
सिया पूछे, "भगवन कलयुग में धर्म कर्म को कोई नहीं मानेगा?"
तो प्रभु बोले, "धरम भी होगा, करम भी होगा"
धरम भी होगा, करम भी होगा, लेकिन शर्म नहीं होगी
बात-बात में मात-पिता को...
बात-बात में मात-पिता को बेटा आँख दिखाएगा
हंस चुगेगा दाना-दुनका, कौआ मोती खाएगा
हे, रामचंद्र कह गए सिया से...
राजा और प्रजा दोनों में होगी निसदिन खींचा-तानी, खींचा-तानी
कदम-कदम पर करेंगे दोनों अपनी-अपनी मनमानी, मनमानी
जिसके हाथ में होगी लाठी...
जिसके हाथ में होगी लाठी, भैंस वही ले जाएगा
हंस चुगेगा दाना-दुनका
हंस चुगेगा दाना-दुनका, कौआ मोती खाएगा
हंस चुगेगा दाना-दुनका, कौआ मोती खाएगा
हे, रामचंद्र कह गए सिया से...
सुनो सिया कलयुग में काला धन और काले मन होंगे, मन होंगे
चोर उचक्के, नगरसेठ और प्रभु-भक्त निर्धन होंगे, निर्धन होंगे
जो भी होगा लोभी-भोगी...
जो भी होगा लोभी-भोगी वो जोगी कहलायेगा
हंस चुगेगा दाना-दुनका
हंस चुगेगा दाना-दुनका, कौआ मोती खाएगा
हंस चुगेगा दाना-दुनका, कौआ मोती खाएगा
हे, रामचंद्र कह गए सिया से...
मंदिर सूना-सूना होगा, भरी रहेंगी मधुशाला, हो मधुशाला
पिता के संग-संग भरी सभा में नाचेंगी घर की बाला, घर की बाला
कैसा कन्यादान पिताही...
कैसा कन्यादान पिताही, कन्या का दान खा जाएगा
हंस चुगेगा दाना-दुनका
हंस चुगेगा दाना-दुनका, कौआ मोती खाएगा
हंस चुगेगा दाना-दुनका, कौआ मोती खाएगा
मूरख की प्रीत बुरी, जुए की जीत बुरी
बुरे संग बैठ, चैन भागे ही भागे
काजल की कोठरी में कैसो ही जतन करो
काजल का दाग़ भाई लागे ही लागे रे भी
काजल का दाग़ भाई लागे ही लागे
हे जी रे, हे जी रे
कितना जती हो कोई, कितना सती हो कोई
कामनी के संग काम जागे ही जागे
सुनो कहे गोपीराम जिसका है नाम काम
उसका तो फंद गले लागे ही लागे रे भाई
उसका तो फंद गले लागे ही लागे
हे जी रे, हे जी रे
रामचंद्र कह गए सिया से
रामचंद्र कह गए सिया से ऐसा कलयुग आएगा
हंस चुगेगा दाना-दुनका
हंस चुगेगा दाना-दुनका, कौआ मोती खाएगा
हंस चुगेगा दाना-दुनका, कौआ मोती खाएगा
हे जी रे, हे जी रे
रामचंद्र कह गए सिया से
रामचंद्र कह गए सिया से ऐसा कलयुग आएगा
हंस चुगेगा दाना-दुनका
हंस चुगेगा दाना-दुनका, कौआ मोती खाएगा
हंस चुगेगा दाना-दुनका, कौआ मोती खाएगा
अरे, रामचंद्र कह गए सिया से...
सिया पूछे, "भगवन कलयुग में धर्म कर्म को कोई नहीं मानेगा?"
तो प्रभु बोले, "धरम भी होगा, करम भी होगा"
धरम भी होगा, करम भी होगा, लेकिन शर्म नहीं होगी
बात-बात में मात-पिता को...
बात-बात में मात-पिता को बेटा आँख दिखाएगा
हंस चुगेगा दाना-दुनका, कौआ मोती खाएगा
हे, रामचंद्र कह गए सिया से...
राजा और प्रजा दोनों में होगी निसदिन खींचा-तानी, खींचा-तानी
कदम-कदम पर करेंगे दोनों अपनी-अपनी मनमानी, मनमानी
जिसके हाथ में होगी लाठी...
जिसके हाथ में होगी लाठी, भैंस वही ले जाएगा
हंस चुगेगा दाना-दुनका
हंस चुगेगा दाना-दुनका, कौआ मोती खाएगा
हंस चुगेगा दाना-दुनका, कौआ मोती खाएगा
हे, रामचंद्र कह गए सिया से...
सुनो सिया कलयुग में काला धन और काले मन होंगे, मन होंगे
चोर उचक्के, नगरसेठ और प्रभु-भक्त निर्धन होंगे, निर्धन होंगे
जो भी होगा लोभी-भोगी...
जो भी होगा लोभी-भोगी वो जोगी कहलायेगा
हंस चुगेगा दाना-दुनका
हंस चुगेगा दाना-दुनका, कौआ मोती खाएगा
हंस चुगेगा दाना-दुनका, कौआ मोती खाएगा
हे, रामचंद्र कह गए सिया से...
मंदिर सूना-सूना होगा, भरी रहेंगी मधुशाला, हो मधुशाला
पिता के संग-संग भरी सभा में नाचेंगी घर की बाला, घर की बाला
कैसा कन्यादान पिताही...
कैसा कन्यादान पिताही, कन्या का दान खा जाएगा
हंस चुगेगा दाना-दुनका
हंस चुगेगा दाना-दुनका, कौआ मोती खाएगा
हंस चुगेगा दाना-दुनका, कौआ मोती खाएगा
मूरख की प्रीत बुरी, जुए की जीत बुरी
बुरे संग बैठ, चैन भागे ही भागे
काजल की कोठरी में कैसो ही जतन करो
काजल का दाग़ भाई लागे ही लागे रे भी
काजल का दाग़ भाई लागे ही लागे
हे जी रे, हे जी रे
कितना जती हो कोई, कितना सती हो कोई
कामनी के संग काम जागे ही जागे
सुनो कहे गोपीराम जिसका है नाम काम
उसका तो फंद गले लागे ही लागे रे भाई
उसका तो फंद गले लागे ही लागे
Credits
Writer(s): Anup Jalota
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