Raaste Bhar Ro Ro Ke (Live In India/1985)
आ आ आ
रस्ते भर रो-रो के हमसे पूछा पाँव के छालों ने
रस्ते भर रो-रो के हमसे पूछा पाँव के छालों ने
बस्ती कितनी दुर बसा ली
बस्ती कितनी दुर बसा ली, दिल में बसने वालों ने
रस्ते भर रो-रो के हमसे पूछा पाँव के छालों ने
कौन हमारा दर्द पढ़ेगा इन ज़ख़्मी दीवारों पर
कौन हमारा दर्द पढ़ेगा इन ज़ख़्मी दीवारों पर
अपना-अपना नाम लिखा है
अपना-अपना नाम लिखा है सारे आने वालों ने
रस्ते भर रो-रो के हमसे पूछा पाँव के छालों ने
बस्ती कितनी दुर बसा ली
बस्ती कितनी दुर बसा ली, दिल में बसने वालों ने
रस्ते भर रो-रो के हमसे पूछा पाँव के छालों ने
दिल का ग़मों से रिश्ता क्या है, इश्क़ का हासिल आँसू क्यूँ
दिल का ग़मों से रिश्ता क्या है, इश्क़ का हासिल आँसू क्यूँ
हमको कितना ज़हर पिलाया
हमको कितना ज़हर पिलाया, इन बेदर्द सवालों ने
रस्ते भर रो-रो के हमसे पूछा पाँव के छालों ने
बस्ती कितनी दुर बसा ली
बस्ती कितनी दुर बसा ली, दिल में बसने वालों ने
रस्ते भर रो-रो के हमसे पूछा पाँव के छालों ने
बर्बादी का मेला देखूँ 'क़ैसर' अपनी आँखोँ से
बर्बादी का मेला देखूँ 'क़ैसर' अपनी आँखोँ से
मेरे घर को छोड़ दिया है
मेरे घर को छोड़ दिया है, बस्ती फूँकने वालों ने
रस्ते भर रो-रो के हमसे पूछा पाँव के छालों ने
बस्ती कितनी दुर बसा ली
बस्ती कितनी दुर बसा ली, दिल में बसने वालों ने
रस्ते भर रो-रो के हमसे पूछा पाँव के छालों ने
रस्ते भर रो-रो के हमसे पूछा पाँव के छालों ने
रस्ते भर रो-रो के हमसे पूछा पाँव के छालों ने
बस्ती कितनी दुर बसा ली
बस्ती कितनी दुर बसा ली, दिल में बसने वालों ने
रस्ते भर रो-रो के हमसे पूछा पाँव के छालों ने
कौन हमारा दर्द पढ़ेगा इन ज़ख़्मी दीवारों पर
कौन हमारा दर्द पढ़ेगा इन ज़ख़्मी दीवारों पर
अपना-अपना नाम लिखा है
अपना-अपना नाम लिखा है सारे आने वालों ने
रस्ते भर रो-रो के हमसे पूछा पाँव के छालों ने
बस्ती कितनी दुर बसा ली
बस्ती कितनी दुर बसा ली, दिल में बसने वालों ने
रस्ते भर रो-रो के हमसे पूछा पाँव के छालों ने
दिल का ग़मों से रिश्ता क्या है, इश्क़ का हासिल आँसू क्यूँ
दिल का ग़मों से रिश्ता क्या है, इश्क़ का हासिल आँसू क्यूँ
हमको कितना ज़हर पिलाया
हमको कितना ज़हर पिलाया, इन बेदर्द सवालों ने
रस्ते भर रो-रो के हमसे पूछा पाँव के छालों ने
बस्ती कितनी दुर बसा ली
बस्ती कितनी दुर बसा ली, दिल में बसने वालों ने
रस्ते भर रो-रो के हमसे पूछा पाँव के छालों ने
बर्बादी का मेला देखूँ 'क़ैसर' अपनी आँखोँ से
बर्बादी का मेला देखूँ 'क़ैसर' अपनी आँखोँ से
मेरे घर को छोड़ दिया है
मेरे घर को छोड़ दिया है, बस्ती फूँकने वालों ने
रस्ते भर रो-रो के हमसे पूछा पाँव के छालों ने
बस्ती कितनी दुर बसा ली
बस्ती कितनी दुर बसा ली, दिल में बसने वालों ने
रस्ते भर रो-रो के हमसे पूछा पाँव के छालों ने
Credits
Writer(s): Qaiser Ul Jaffri, Kuldip Singh
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