Nadiya Na Piye Kabhi

नदिया ना पिवे कभी अपना जल
वृक्ष ना खाए कभी अपने फल
नदिया ना पिवे कभी अपना जल

वृक्ष ना खाए कभी अपने फल
अपने तन का, मन का, धन का दूजो को दे जो दान है
वो सच्चा इंसान रे, इस धरती का भगवान रे
वो सच्चा इंसान रे, इस धरती का भगवान रे

नदिया ना पिवे कभी अपना जल
वृक्ष ना खाए कभी अपने फल

अगर किसी का अंग जले
और दुनिया को मीठी सुहास दे
अगर किसी का अंग जले
और दुनिया को मीठी सुहास दे

दीपक का जलता जीवन है
पर दूजो को अपना प्रकाश दे
दूजो को अपना प्रकाश दे
धर्म है जिस का भगवत गीता

धर्म है जिस का भगवत गीता
सेवा ही वेद-पुराण है
वो सच्चा इंसान रे, इस धरती का भगवान रे
वो सच्चा इंसान रे, इस धरती का भगवान रे

नदिया ना पिवे कभी अपना जल
वृक्ष ना खाए कभी अपने फल

अच्छी करनी कर ले रे भैया
कर्म ना करियो काला रे
अच्छी करनी कर ले रे भैया
कर्म ना करियो काला रे

कई आँख से देख रहा है
तुझे देखने वाला रे
तुझे देखने वाला रे
अच्छी करनी करे चतुर जन

अच्छी करनी करे चतुर जन
पाए जग में मान रे
वो सच्चा इंसान रे, इस धरती का भगवान रे
हो, वो सच्चा इंसान रे, इस धरती का भगवान रे

नदिया ना पिवे कभी अपना जल
वृक्ष ना खाए कभी अपने फल

चाहे कोई गुण-गान करे, चाहे करे निंदा कोई
चाहे कोई गुण-गान करे, चाहे करे निंदा कोई
फूलों से चाहे सत्कार करे या कांटे चुभो जाए कोई
कांटे चुभो जाए कोई

मान और अपमान सदा ही
मान और अपमान सदा ही
जिसके लिए ये सामान रे
वो सच्चा इंसान रे, इस धरती का भगवान रे
हो, वो सच्चा इंसान रे, इस धरती का भगवान रे

नदिया ना पिवे कभी अपना जल
वृक्ष ना खाए कभी अपने फल
नदिया ना पिवे कभी अपना जल

वृक्ष ना खाए कभी अपने फल
अपने तन का, मन का, धन का दूजो को दे जो दान है
वो सच्चा इंसान रे, इस धरती का भगवान रे
हो, वो सच्चा इंसान रे, इस धरती का भगवान रे

नदिया ना पिवे कभी अपना जल
वृक्ष ना खाए कभी अपने फल
(नदिया ना पिवे कभी अपना जल)
(वृक्ष ना खाए कभी अपने फल)

(नदिया ना पिवे कभी अपना जल)
(वृक्ष ना खाए कभी अपने फल)
(नदिया ना पिवे कभी अपना जल)
(वृक्ष ना खाए कभी अपने फल)



Credits
Writer(s): Devendra Kumar, Paresh Shah
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