Kabhi Khamosh Baithogi

कभी ख़ामोश बैठोगी, कभी कुछ गुनगुनाओगी

कभी ख़ामोश बैठोगी, कभी कुछ गुनगुनाओगी
कभी ख़ामोश बैठोगी, कभी कुछ गुनगुनाओगी
कभी ख़ामोश बैठोगी, कभी कुछ गुनगुनाओगी
मैं उतना याद आऊँगा, मुझे जितना भुलाओगी
मैं उतना याद आऊँगा, मुझे जितना भुलाओगी

कभी ख़ामोश बैठोगे, कभी कुछ गुनगुनाओगे
कभी ख़ामोश बैठोगे, कभी कुछ गुनगुनाओगे
कभी ख़ामोश बैठोगे, कभी कुछ गुनगुनाओगे
मैं उतना याद आऊँगी, मुझे जितना भुलाओगे
मैं उतना याद आऊँगी, मुझे जितना भुलाओगे

पढ़ोगे ख़त कभी मेरे, कभी तस्वीर देखोगे
कभी हाथों में जो लिखी है वो तक़दीर देखोगे
लिखोगी कुछ हथेली पर, पढ़ोगी कुछ किताबों में
नज़र आऊँगा मैं तुम को सवालों में, जवाबों में

कभी तुम मुस्कुराओगी, कभी आँसू बहाओगी
किसी से कुछ छुपाओगी, किसी को कुछ बताओगी

कभी ख़ामोश बैठोगे, कभी कुछ गुनगुनाओगे
मैं उतना याद आऊँगी, मुझे जितना भुलाओगे
मैं उतना याद आऊँगी, मुझे जितना भुलाओगे

कभी ख़ामोश बैठोगी, कभी कुछ गुनगुनाओगी
मैं उतना याद आऊँगा, मुझे जितना भुलाओगी
मैं उतना याद आऊँगा, मुझे जितना भुलाओगी

मेरे सीने पे सर रख कर गुज़ारी हैं कई रातें
भुला सकती हो तुम कैसे वो पल-पल की मुलाक़ातें?
नई रातों में तुम अक्सर पुराने दिन तलाशोगे
कोई चेहरा भी मिल जाए, मेरा चेहरा तराशोगे

मेरी तस्वीर फेंकोगे ना मेरे ख़त जलाओगे
दीया अपने सिरहाने का जलाओगे-बुझाओगे

कभी ख़ामोश बैठोगी, कभी कुछ गुनगुनाओगी
मैं उतना याद आऊँगा, मुझे जितना भुलाओगी
मैं उतना याद आऊँगा, मुझे जितना भुलाओगी

कभी ख़ामोश बैठोगे, कभी कुछ गुनगुनाओगे
मैं उतना याद आऊँगी, मुझे जितना भुलाओगे
मैं उतना याद आऊँगा, मुझे जितना भुलाओगी



Credits
Writer(s): Rahat Indori
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