Humsafar Milti Hai Manzil (From "Insaaf")

हमसफ़र मिलती है मंज़िल ठोकरें खाने के बाद
हमसफ़र मिलती है मंज़िल ठोकरें खाने के बाद
रंग लाती है हीना पत्थर पे पिस जाने के बाद
रंग लाती है हीना पत्थर पे पिस जाने के बाद

मौज बन जाती है तूफ़ाँ साहिल से टकराने के बाद
रंग लाती है हीना पत्थर पे पिस जाने के बाद
रंग लाती है हीना पत्थर पे पिस जाने के बाद
हमसफ़र मिलती है मंज़िल...

किस लिए नाराज़ है...
किस लिए नाराज़ है सारे जहाँ से जान-ए-मन?
खून-ए-दिल से सींचने पड़ते हैं ख़ाबों के चमन
ख़ाबों के चमन

बीज तो बनते है फूल, मिट्टी में मिल जाने के बाद
रंग लाती है हीना पत्थर पे पिस जाने के बाद
रंग लाती है हीना पत्थर पे पिस जाने के बाद
हमसफ़र मिलती है मंज़िल...

बाद में बनना खुदा, पहले ज़रा इंसान बन
बाद में बनना खुदा, पहले ज़रा इंसान बन
ज़िन्दगी में है ज़ुरूरी थोड़ा सा दीवानापन
दीवानापन

बात आती है समझ में होश उड़ जाने के बाद
रंग लाती है हीना पत्थर पे पिस जाने के बाद
रंग लाती है हीना पत्थर पे पिस जाने के बाद
हमसफ़र मिलती है मंज़िल...

दूर रहकर अपने बंदों से खुदा को क्या मिला?
दूर रहकर अपने बंदों से खुदा को क्या मिला?
जब तलक आकाश पे था वो अकेला ही रहा
अकेला रहा

आज वो घर-घर में है, धरती पे आ जाने के बाद
रंग लाती है हीना पत्थर पे पिस जाने के बाद
रंग लाती है हीना पत्थर पे पिस जाने के बाद

हमसफ़र मिलती है मंज़िल ठोकरें खाने के बाद
रंग लाती है हीना पत्थर पे पिस जाने के बाद
रंग लाती है हीना पत्थर पे पिस जाने के बाद



Credits
Writer(s): Farooq Qaiser, Pyarelal Ramprasad Sharma, Laxmikant Shantaram Kudalkar
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