Sukhkarta Dukhaharta - Mantrapushpanjali

सुखकर्ता दुःखहर्ता वार्ता विघ्नाची
(हो, वार्ता विघ्नाची)
नुरवी पुरवी प्रेम कृपया जयाची
सर्वागी सुन्दर उटी शेंदुराची
(हो, उटी शेंदुराची)
कंठी झळके माळ मुक्ताफळाची

जय देव, जय देव, जय मंगलमूर्ती
(जय देव, जय देव, जय मंगलमूर्ती)
दर्शनमात्रे मनकामना पुरती
(जय देव, जय देव, जय मंगलमूर्ती)
(हो, श्री मंगलमूर्ती)
(दर्शनमात्रे मनकामना पुरती)
(जय देव, जय देव, जय मंगलमूर्ती)
(हो, श्री मंगलमूर्ती)

रत्नखचित फरा तूज गौरीकुमरा
(तूज गौरीकुमरा)
चंदनाची उटी कुंकुमकेशरा
(चंदनाची उटी कुंकुमकेशरा)
हिरे जड़ित मुकुट शोभतो बरा
(शोभतो बरा)
रूणझुणती नुपुरे
रूणझुणती नुपुरे चुरणी घागरिया

(जय देव, जय देव, जय मंगलमूर्ती)
(हो, श्री मंगलमूर्ती)
(दर्शनमात्रे मनकामना पुरती)
(जय देव, जय देव, जय मंगलमूर्ती)
(हो, श्री मंगलमूर्ती)

लंबोदर पीतांबर फणी वरवंदना
(फणी वरवंदना)
सारळ सोंड वक्रतुंड त्रिनयना
(सारळ सोंड वक्रतुंड त्रिनयना)
दास रामाचा वाट पाहे सदना
(वाट पाहे सदना)
संकटी पावावे निर्वाणी रक्षावे सुरवंदना

(जय देव, जय देव, जय मंगलमूर्ती)
(हो, श्री मंगलमूर्ती)
(दर्शनमात्रे मनकामना पुरती)
(जय देव, जय देव, जय मंगलमूर्ती)
(हो, श्री मंगलमूर्ती)

घालीन लोटांगण, वंदीन चरण
डोळ्यांनीं पाहन रूप तुझें
प्रेमें आलिंगन, आनंदे पूजिन
भावें ओवाळीन म्हणे नामा
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव
त्वमेव विद्या द्रविणम् त्वमेव
त्वमेव सर्वम् मम देव देव

कायेन वाचा मनसेंद्रीयेव्रा, बुद्धयात्मना वा प्रकृति स्वभावात
करोमि यध्य्त सकलं परस्मे, नारायणायेति समर्पयामि
अच्युतं केशवं रामनारायणं कृष्णदामोदर वासुदेवं हरमि
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं, जानकीनायकं रामचंद्र भजे

हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे
हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे
हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे

ॐ गणानां त्वा गणपतिं हवामहे
कविं कवीनामुपमश्रवस्तमम्
ज्येष्ठराजं ब्रह्मणाम् ब्रह्मणस्पत
आ नः शृण्वन्नूतिभिःसीदसादनम्

ॐ यज्ञेन यज्ञमयजंत देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्
ते हं नाकं महिमानः
सचंत यत्र पूर्वे साध्याः संति देवा:
ॐ राजाधिराजाय प्रसह्ये साहिने
नमो वयं वैश्रवणाय कुमहि

स मे कामान्कामकामाय मह्यम
कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु
कुबेराय वैश्रवणाय
महाराजाय नमः
ॐ स्वस्ति
साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं
पारमेष्ठ्यं राज्यं महाराज्यमाधिपत्यमयं

समंतपर्यायी स्यात्सार्वभौम: सार्वायुष
आंतादापरार्धात्पृथिव्यै समुद्रपर्यंता या एकराळिति तदप्येषश्लोकोऽ भिगीतो मरुत:
परिवेष्टारो मरुतस्यावसन्गृहे
आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवा: सभासद इति



Credits
Writer(s): Traditional, Sanjayraj Gaurinandan
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