Ankh Hai Bhari Bhari
मोहब्बत के चमन में दिल-कशी आए तो क्यूँ आए?
गुलों में पहली जैसी ताज़गी आए तो क्यूँ आए?
सितारे आसमाँ की सेज पर बे-होश सोए हैं
उजाला घर में क्या हो, चाँदनी आए तो क्यूँ आए?
अँधेरा ही अँधेरा हो, जहाँ ग़म का बसेरा हो
वहाँ रूठी हुई कोई ख़ुशी आए तो क्यूँ आए?
तुम्हारी बे-वफ़ाई ने मुझे बर्बाद कर डाला
मेरे ख़ामोश होंठों पर हँसी आए तो क्यूँ आए?
आँख है भरी-भरी, और तुम
मुस्कुराने की बात करते हो
आँख है भरी-भरी, और तुम
मुस्कुराने की बात करते हो
ज़िंदगी ख़फ़ा-ख़फ़ा, और तुम
दिल लगाने की बात करते हो
आँख है भरी-भरी, और तुम
मुस्कुराने की बात करते हो
अभी तुम ना-समझ हो, मैं तुम्हें समझा नहीं सकता
अभी तुम ना-समझ हो, मैं तुम्हें समझा नहीं सकता
बहुत कोशिश करूँ फ़िर भी समझ में आ नहीं सकता
बड़ी मुश्किल से होश आया है मेरी नौजवानी को
मेरा दिल और कोई चोट हरगिज़ खा नहीं सकता
मेरा दावा ये है, उसको मसीहायी नहीं आती
मोहब्बत से जो दिल के ज़ख़्म को सहला नहीं सकता
तुम्हारे पास आँसू हैं, जहाँ के पास ताने हैं
इधर भी जा नहीं सकता, उधर भी जा नहीं सकता
मेरे हालात ऐसे हैं कि मैं कुछ कर नहीं सकता
मेरे हालात ऐसे हैं कि मैं कुछ कर नहीं सकता
तड़पता है ये दिल, लेकिन, ये आहें भर नहीं सकता
ज़ख़्म है हरा-हरा, और तुम
चोट खाने की बात करते हो
ज़िंदगी ख़फ़ा-ख़फ़ा, और तुम
दिल लगाने की बात करते हो
आँख है भरी-भरी, और तुम
मुस्कुराने की बात करते हो
गुज़री हुई सदी की शर्म-ओ-हया नहीं है
गुज़री हुई सदी की शर्म-ओ-हया नहीं है
इंसानियत हो जिसमें ऐसी अदा नहीं है
सबका है ध्यान अपनी-अपनी ज़रूरतों पर
चाहत की गुफ़्तुगू में कोई मज़ा नहीं है
बाहर से आश्नाई, अंदर से बे-वफ़ाई
दुनिया में इस मरज़ की कोई दवा नहीं है
चेहरे बदल-बदल के दुनिया को लूटते हैं
ये संग-दिल हैं, इनके दिल में वफ़ा नहीं हैं
ज़माने में भला कैसे मोहब्बत लोग करते हैं?
ज़माने में भला कैसे मोहब्बत लोग करते हैं?
वफ़ा के नाम की अब तो शिकायत लोग करते हैं
आग है बुझी-बुझी, और तुम
लौ जलने की बात करते हो
ज़िंदगी ख़फ़ा-ख़फ़ा, और तुम
दिल लगाने की बात करते हो
आँख है भरी-भरी, और तुम
मुस्कुराने की बात करते हो
मेरा हर ख़्वाब झूठा है, मेरी हर आस झूठी है
मेरे नाज़ुक ख़यालों की कड़ी सौ बार टूटी है
तुम्हीं सोचो, मोहब्बत के सफ़र में बे-वफ़ाई का तुम्हें इल्ज़ाम कैसे दूँ?
मेरी क़िस्मत ही फूटी है
कभी जो ख़्वाब देखा तो मिलीं परछाइयाँ मुझको
कभी जो ख़्वाब देखा तो मिलीं परछाइयाँ मुझको
मुझे महफ़िल की ख़्वाहिश थी, मिलीं तन्हाइयाँ मुझको
हर तरफ़ धुआँ-धुआँ, और तुम
आशियाने की बात करते हो
ज़िंदगी ख़फ़ा-ख़फ़ा, और तुम
दिल लगाने की बात करते हो
आँख है भरी-भरी, और तुम
मुस्कुराने की बात करते हो
गुलों में पहली जैसी ताज़गी आए तो क्यूँ आए?
सितारे आसमाँ की सेज पर बे-होश सोए हैं
उजाला घर में क्या हो, चाँदनी आए तो क्यूँ आए?
अँधेरा ही अँधेरा हो, जहाँ ग़म का बसेरा हो
वहाँ रूठी हुई कोई ख़ुशी आए तो क्यूँ आए?
तुम्हारी बे-वफ़ाई ने मुझे बर्बाद कर डाला
मेरे ख़ामोश होंठों पर हँसी आए तो क्यूँ आए?
आँख है भरी-भरी, और तुम
मुस्कुराने की बात करते हो
आँख है भरी-भरी, और तुम
मुस्कुराने की बात करते हो
ज़िंदगी ख़फ़ा-ख़फ़ा, और तुम
दिल लगाने की बात करते हो
आँख है भरी-भरी, और तुम
मुस्कुराने की बात करते हो
अभी तुम ना-समझ हो, मैं तुम्हें समझा नहीं सकता
अभी तुम ना-समझ हो, मैं तुम्हें समझा नहीं सकता
बहुत कोशिश करूँ फ़िर भी समझ में आ नहीं सकता
बड़ी मुश्किल से होश आया है मेरी नौजवानी को
मेरा दिल और कोई चोट हरगिज़ खा नहीं सकता
मेरा दावा ये है, उसको मसीहायी नहीं आती
मोहब्बत से जो दिल के ज़ख़्म को सहला नहीं सकता
तुम्हारे पास आँसू हैं, जहाँ के पास ताने हैं
इधर भी जा नहीं सकता, उधर भी जा नहीं सकता
मेरे हालात ऐसे हैं कि मैं कुछ कर नहीं सकता
मेरे हालात ऐसे हैं कि मैं कुछ कर नहीं सकता
तड़पता है ये दिल, लेकिन, ये आहें भर नहीं सकता
ज़ख़्म है हरा-हरा, और तुम
चोट खाने की बात करते हो
ज़िंदगी ख़फ़ा-ख़फ़ा, और तुम
दिल लगाने की बात करते हो
आँख है भरी-भरी, और तुम
मुस्कुराने की बात करते हो
गुज़री हुई सदी की शर्म-ओ-हया नहीं है
गुज़री हुई सदी की शर्म-ओ-हया नहीं है
इंसानियत हो जिसमें ऐसी अदा नहीं है
सबका है ध्यान अपनी-अपनी ज़रूरतों पर
चाहत की गुफ़्तुगू में कोई मज़ा नहीं है
बाहर से आश्नाई, अंदर से बे-वफ़ाई
दुनिया में इस मरज़ की कोई दवा नहीं है
चेहरे बदल-बदल के दुनिया को लूटते हैं
ये संग-दिल हैं, इनके दिल में वफ़ा नहीं हैं
ज़माने में भला कैसे मोहब्बत लोग करते हैं?
ज़माने में भला कैसे मोहब्बत लोग करते हैं?
वफ़ा के नाम की अब तो शिकायत लोग करते हैं
आग है बुझी-बुझी, और तुम
लौ जलने की बात करते हो
ज़िंदगी ख़फ़ा-ख़फ़ा, और तुम
दिल लगाने की बात करते हो
आँख है भरी-भरी, और तुम
मुस्कुराने की बात करते हो
मेरा हर ख़्वाब झूठा है, मेरी हर आस झूठी है
मेरे नाज़ुक ख़यालों की कड़ी सौ बार टूटी है
तुम्हीं सोचो, मोहब्बत के सफ़र में बे-वफ़ाई का तुम्हें इल्ज़ाम कैसे दूँ?
मेरी क़िस्मत ही फूटी है
कभी जो ख़्वाब देखा तो मिलीं परछाइयाँ मुझको
कभी जो ख़्वाब देखा तो मिलीं परछाइयाँ मुझको
मुझे महफ़िल की ख़्वाहिश थी, मिलीं तन्हाइयाँ मुझको
हर तरफ़ धुआँ-धुआँ, और तुम
आशियाने की बात करते हो
ज़िंदगी ख़फ़ा-ख़फ़ा, और तुम
दिल लगाने की बात करते हो
आँख है भरी-भरी, और तुम
मुस्कुराने की बात करते हो
Credits
Writer(s): Saifi Nadeem, Rathod Shravan, Pandy Sameer (t)
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