Hamare Isht Dev Hanuman
हमारे इष्ट देव हनुमान
हमें भी दीजे अभय वरदान
हमारे इष्ट देव हनुमान
हमें भी दीजे अभय वरदान
सदा शिव सुंदर सा जो रूप
बना था कभी अवध का भूप
दृष्टिगत हो वो रूप अनुप
नेत्र ये करें मधुप से पान
उसी मुख सर सिज की मुस्कान
बना लें अध-औधों की क्षीर्ण
के जिनके गुण सागर में लीन
लगाते डुबकी मुनि मन मीन
उसी गुण गण का कर सनमान
हमारे करें श्रवण पुर पान
हमारे इष्ट देव हनुमान
हमें भी दीजे अभय वरदान
हमारे इष्ट देव हनुमान
हमें भी दीजे अभय वरदान
पाकर जिनका चरण स्पर्श
शिला सी गौतम नारी सा हर्ष
पा सकी फिर से परम प्रकर्ष
उसी पद रज का कर संधान
पढ़ाऊँ निज मस्तक का मान
जिन्हें आया पा अपनेगे
जनक भी सचमुच बने विवेक
ज्ञान ने पाया सहज सनेह
धरस हो उठा योग-विज्ञान
हमारे इष्ट देव हनुमान
हमारे इष्ट देव हनुमान
हमें भी दीजे अभय वरदान
हमारे इष्ट देव हनुमान
हमें भी दीजे अभय वरदान
सुना जब सिंघासन अभिषेक
हुआ तब नहीं हर्ष अतिरेक
राज्य वनमाला भिन्न ना एक
चले जो छोड़ पट् परिधान
दिखा कर झांकी बंधु समेत
बोल तुलसी का हृदय अनिकेत
रचाया मानस सा भवसेत
उसी झांकी को पा अमलान
बज उठे उर वीणा के तान
हमारे इष्ट देव हनुमान
हमारे इष्ट देव हनुमान
हमें भी दीजे अभय वरदान
हमारे इष्ट देव हनुमान
हमें भी दीजे अभय वरदान
भटकता रहा अनेकों कल्प
योनी ८४ लाख अनल
छोड़ अब सब संकल्प-विकल्प
धरे मन आज उसी का ध्यान
बना जो मानव से भगवान
मिली जो हमको मानव देह
नहीं वो क्षुद्र कामना के
पपिहा बनो राम केने
प्राप्त कर स्वाती नाम जलपान
समर्पित करूँ अंत में प्राण
समर्पित करूँ अंत में प्राण
हमारे इष्ट देव हनुमान
हमें भी दीजे अभय वरदान
हमारे इष्ट देव हनुमान
हमें भी दीजे अभय वरदान
हमारे इष्ट देव हनुमान
हमें भी दीजे अभय वरदान
हमारे इष्ट देव हनुमान
हमें भी दीजे अभय वरदान
हमें भी दीजे अभय वरदान
हमारे इष्ट देव हनुमान
हमें भी दीजे अभय वरदान
सदा शिव सुंदर सा जो रूप
बना था कभी अवध का भूप
दृष्टिगत हो वो रूप अनुप
नेत्र ये करें मधुप से पान
उसी मुख सर सिज की मुस्कान
बना लें अध-औधों की क्षीर्ण
के जिनके गुण सागर में लीन
लगाते डुबकी मुनि मन मीन
उसी गुण गण का कर सनमान
हमारे करें श्रवण पुर पान
हमारे इष्ट देव हनुमान
हमें भी दीजे अभय वरदान
हमारे इष्ट देव हनुमान
हमें भी दीजे अभय वरदान
पाकर जिनका चरण स्पर्श
शिला सी गौतम नारी सा हर्ष
पा सकी फिर से परम प्रकर्ष
उसी पद रज का कर संधान
पढ़ाऊँ निज मस्तक का मान
जिन्हें आया पा अपनेगे
जनक भी सचमुच बने विवेक
ज्ञान ने पाया सहज सनेह
धरस हो उठा योग-विज्ञान
हमारे इष्ट देव हनुमान
हमारे इष्ट देव हनुमान
हमें भी दीजे अभय वरदान
हमारे इष्ट देव हनुमान
हमें भी दीजे अभय वरदान
सुना जब सिंघासन अभिषेक
हुआ तब नहीं हर्ष अतिरेक
राज्य वनमाला भिन्न ना एक
चले जो छोड़ पट् परिधान
दिखा कर झांकी बंधु समेत
बोल तुलसी का हृदय अनिकेत
रचाया मानस सा भवसेत
उसी झांकी को पा अमलान
बज उठे उर वीणा के तान
हमारे इष्ट देव हनुमान
हमारे इष्ट देव हनुमान
हमें भी दीजे अभय वरदान
हमारे इष्ट देव हनुमान
हमें भी दीजे अभय वरदान
भटकता रहा अनेकों कल्प
योनी ८४ लाख अनल
छोड़ अब सब संकल्प-विकल्प
धरे मन आज उसी का ध्यान
बना जो मानव से भगवान
मिली जो हमको मानव देह
नहीं वो क्षुद्र कामना के
पपिहा बनो राम केने
प्राप्त कर स्वाती नाम जलपान
समर्पित करूँ अंत में प्राण
समर्पित करूँ अंत में प्राण
हमारे इष्ट देव हनुमान
हमें भी दीजे अभय वरदान
हमारे इष्ट देव हनुमान
हमें भी दीजे अभय वरदान
हमारे इष्ट देव हनुमान
हमें भी दीजे अभय वरदान
हमारे इष्ट देव हनुमान
हमें भी दीजे अभय वरदान
Credits
Writer(s): Sudhakar Sharma
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