Traahi Maam

मैं ज़ुबान बेज़ुबान की
उस मेहनती इंसान की
गरीब किसान की
जिसकी इक पहचान थी
जो गुम हो गयी कही
जो दिखती थी कभी खेत में
आज लटकी है वो पेड़ पे
कौन ज़िम्मेदार है?
आप? मैं? सरकार ये?
सब ही भागीदार है
वो पेट औरों का भर रहा
पर खुदख़ुशी से मार रहा
क्या प्रोफ़िट हो गया है क़ीमती एक इंसान से
पूछता सवाल मैं ये आपसे भगवान से
रहे हालात ये तो ना बचेंगे ये किसान रे
फिर बैठना और सोचना की खाये क्या इंसान ये

फिर बैठना और सोचना की खाये क्या इंसान ये
मरा था खुदख़ुशी से या हत्यारा इंसान ये
मरा था खुदख़ुशी से या हत्यारा इंसान ये
त्राहि माम त्राहि माम

तू बैठा एसी-ओं में मस्त बर्गर पिज़्ज़े खा रहा
वो तड़पे गर्मियों में क्या ही उसके हिस्से आ रहा
गवा रहा वो ज़िंदगी अनजान के लिए
पर मिलते ना गवाह खुद के इंसाफ़ के लिए
मन करे है उसका भी की बचे उसके पढ़ सकें
मन करे है उसका भी की मुस्करा के हंस सके
भर सके वो पेट बैठे भूकें परिवार का
मजबूरियाँ है ज़्यादा वो रह गया कुछ लाचार सा
मेहनती है बहुत पर ना सब है उसके हाथ में
सहे वो मार सूखे का और लड़े जल सैलाब से
जो माँगे हक़ शांति से तो सुनते ना यहाँ पे ये
आ जाए सड़कों पे तो चिल्लाते जनाब ये
मौक़ा उसके पास तो फिर छोड़ दे वो काम सब
चल पड़े सब शहर को सुनसान हो फिर गाँव सब
ख़ाली पेट तेरा जब अन को ना ही पाएगा
त्राहि माम त्राहि माम त्राहि माम चिल्लायेग़ा

त्राहि माम त्राहि माम त्राहि माम चिल्लायेग़ा
त्राहि माम त्राहि माम त्राहि माम चिल्लायेग़ा
त्राहि माम त्राहि माम त्राहि माम चिल्लायेग़ा
त्राहि माम त्राहि माम त्राहि माम चिल्लायेग़ा

फिर पूछता सवाल मैं ये आपसे भगवान से
रहे हालात ये तो ना बचेंगे ये किसान रे
फिर बैठना और सोचना की खाये क्या इंसान ये
फिर बैठना और सोचना की खाये क्या इंसान ये

मरा था खुदख़ुशी से या हत्यारा इंसान ये



Credits
Writer(s): Vivek Sharma
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