Janam Ke Naate Chhod Chali - Cover

जनम के नाते छोड़ चली, नए-नए बंधन जोड़ चली
चली में जाने कहाँ अकेली अंजान नगरिया रे

यहाँ मैं अपने छोड़ चली, वहाँ मैं सपने ओढ़ चली
चली में जाने कहाँ अकेली अंजान नगरिया रे

पराया देस बेगाना, ढूँढ़ रही में कोई पेहचाना
भीड़ में हूँ अकेली, अंजान नगरिया रे

सहमी सी घबराई आँखें, भेए से मेरी भर आई आँखें
ज़िंदगी है अन-बूझ पहेली, अंजान नगरिया रे

खुले जब रस्मों के धागे, भाव मेरे मन में कुछ जागे
जिंदगी लगने लगी सहेली, अंजान नगरिया रे

रीवाजों की रुत बीत गई, रीत की गागर रीत गई
रेह गई मैं बेजान अकेली, अंजान नगरिया रे



Credits
Writer(s): Shivang Upadhyay, Nishant Kamal Vyas, Kusum Joshi
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