Phir Kyun

हर कोई चाहे खुशी के दो पल
हर कोई माँगे एक बेहतर कल
चैन-ओ-सुकूँ से रहें सब यहीं
चाहें सभी जब ऐसी ज़िंदगी

फिर क्यूँ है दर्द? फिर क्यूँ आँसू? क्यूँ है उदासी?
फिर क्यूँ दगा? फिर क्यूँ फ़रेब? क्यूँ है मायूसी?
बस नाम को ज़िंदा हैं हम सभी
और जी रहे मौत सी ज़िंदगी, ज़िंदगी, ज़िंदगी

इंसानियत ही हो मज़हब जहाँ
हर शख़्स चाहे एक ऐसा जहाँ
एक-दूसरे पे करें यूँ एतबार
हर दिल सुने हर दिल की पुकार

फिर क्यूँ है झूठ? क्यूँ है नफ़रत? दिलों में दरारें
फिर क्यूँ जलन? कैसी चुभन? ख़िज़ाँ सी बहारें
बस नाम को ज़िंदा हैं हम सभी
और जी रहे मौत सी ज़िंदगी, ज़िंदगी

बस नाम को ज़िंदा हैं...



Credits
Writer(s): Vasuda Sharma
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