Kaise Kahoon

कैसे कहूँ, कासे कहूँ मन की ये बतियाँ?
उलझी-सुलझी डोर सी कटें हैं मोरी रतियाँ
फिर साँझ ढले राह तके तोहरी ये अखियाँ
कैसे कहूँ, कासे कहूँ मन की ये बतियाँ?

कुछ अनकही सी बातें
कुछ लफ़्ज़ बेज़ुबानी

कुछ अनकही सी बातें
कुछ लफ़्ज़ बेज़ुबानी
फ़िर हसरतों के साए
छलकें ना अश्क-ए-पानी

फ़िसल ना जाएँ हाथों से
कि रेत से ये पल यहाँ

कैसे कहूँ, कासे कहूँ मन की ये बतियाँ?
उलझी-सुलझी डोर सी कटें हैं मोरी रतियाँ

जिस डोर से बुनी थी
लम्हों की हमने लड़ियाँ

जिस डोर से बुनी थी
लम्हों की हमने लड़ियाँ
आओ, जी लें संग ज़रा फिर
लम्हे वो चंद घड़ियाँ

लम्हे बिखर ना जाएँ
समेट लो इन्हें ज़रा

कैसे कहूँ, कासे कहूँ मन की ये बतियाँ?
उलझी-सुलझी डोर सी कटें हैं मोरी रतियाँ



Credits
Writer(s): Ankit Pandey
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