Aafreen (Cover Version)

आज काजल लगाकर के निकलेंगे वो
चाँद के नूर के जैसे दिखते हैं वो
कैसे पर्दा करूँगा मैं उनका, खुदा?
देखेगा सब ज़माना, और होगा फ़िदा

कहीं इश्क़ में जाँ तक लुटा ना दें लोग
कहीं रस्ते से मुझ को हटा ना दें लोग
कैसे पहुँचूँगा उन तक, पता ही नहीं
इतनी भीड़ में 'गर मैं दिखा ही नहीं

कैसे बोलूँगा मैं वो ग़ज़ल जो लिखी?
आज ईद मनाऊँगा 'गर तू दिखी

मुझ से अब तेरी तारीफ़ मुमकिन नहीं
मुझ से अब तेरी तारीफ़ मुमकिन नहीं
क्या कहूँ? क्या नहीं? आफ़रीं-आफ़रीं
तू भी देखे अगर तो कहे हमनशीं
आफ़रीं-आफ़रीं, आफ़रीं-आफ़रीं
हुस्न-ए-जानाँ की तारीफ़ मुमकिन नहीं

हाँ, एक तेरा हाथ हो, एक मेरा हाथ हो
हाथों की अपने ऐसी मुलाक़ात हो
हाथ नाज़ुक तेरे, हाथ कोमल तेरे
हाथ लगते हैं जैसे हों शायर तेरे

हाथ थामे रहें उम्र भर के लिए
हाथ छोड़ें नहीं एक पल के लिए
हाथ सूरज के जैसे बड़े गर्म हैं
हाथ चंदा के जैसे भी तो नर्म हैं

हाथों की इन लकीरों का फ़रमान है
हाथ छूटें नहीं, साथ छूटे नहीं

हुस्न-ए-जानाँ की तारीफ़ मुमकिन नहीं
हुस्न-ए-जानाँ की तारीफ़ मुमकिन नहीं
आफ़रीं-आफ़रीं, आफ़रीं-आफ़रीं
तू भी देखे अगर तो कहे हमनशीं
आफ़रीं-आफ़रीं, आफ़रीं-आफ़रीं
मुझ से अब तेरी तारीफ़ मुमकिन नहीं



Credits
Writer(s): Manan Bhardwaj
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