Mann Qaafira

सुलगे से लब ये मेरे, सुन, इल्तिजा करते
फिर से इन्हें अपने लबों पे रख दे
आसूँ बहा ले गए रंग सारे मेरे घर के
तू छू कर सुर्ख़, यारा, रंग भर दे

महके रूआँ-रूआँ मेरा तेरी तरह
होंठों के दरमियाँ कोई रहे ना जगह
मुझको समेट लो, दो साए एक हों
माँगे है राहतें मन क़ाफ़िरा

जब भी ये बारिशें जिस्मों पे आ गिरें
लगे तूने मुझे छुआ
जलती ये ख़्वाहिशें आँचल बुझा ही दें
टूटे है जो भी दायरा

चलती रहे यूँ आवारा सी उँगलियाँ
गहरी सी साँसों ने अपना घर चुन लिया
मुझको समेट लो, दो साए एक हों
माँगे है राहतें मन क़ाफ़िरा
माँगे है राहतें मन क़ाफ़िरा



Credits
Writer(s): Shayra Apoorva, Rishit Chauhan
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