Dheere Dheere

धीरे-धीरे तुम्हारी याद के आँसू यूँ ढलकने लगे क़रीने से
जैसे कोई शहज़ादी सँभल-सँभल के उतर रही हो शिकस्ता ज़ीने से
धीरे-धीरे, धीरे-धीरे

धीरे-धीरे दर्द फ़ना हो जाता है
धीरे-धीरे जी हल्का हो जाता है
धीरे-धीरे ज़ख़्म फ़ज़ा के भरते हैं
धीरे-धीरे रंग हरा हो जाता है

आँखों के बाहरी छज्जे से अंदर की तरफ़ झाँक कर देखा
कुछ बे-आवाज़ सन्नाटे, धूल से अटे कुछ लम्हें
थोड़े-बहुत साए, और चंद बुझते हुए चराग़ों की लवें सिसकती नज़र आईं
कल जो रोशनी आबाद थी यहाँ, शायद वो मकान बदल रही है
धीरे-धीरे, धीरे-धीरे

धीरे-धीरे आँख समुंदर होती है
धीरे-धीरे सब सहरा हो जाता है
धीरे-धीरे मौसम रंग बदलते हैं
धीरे-धीरे क्या से क्या हो जाता है

तुम्हें याद ना हो शायद
वो जुगनुओं के पर की तरह तुम्हारे जिस्म के उजालों में
मेरा रेज़ा-रेज़ा बिख़र जाना
धीरे-धीरे, धीरे-धीरे

धीरे-धीरे लगती जाती हैं चोटें
धीरे-धीरे दिल पक्का हो जाता है
धीरे-धीरे मैं खिड़की सा खुलता हूँ
धीरे-धीरे वो परदा हो जाता है
धीरे-धीरे ग़म सफ़्हे पर लिखता हूँ
धीरे-धीरे एक नग़्मा हो जाता है

मुझे अब तक याद है
मेरे लबों से वो मुस्कुराना तेरा
तेरी आँखों से वो नज़र आना मेरा
धीरे-धीरे, धीरे-धीरे

धीरे-धीरे



Credits
Writer(s): Rakhi Chand, Pawan Kumar Chand
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