Raahi

थोड़ी ख़्याली में
ऐसे मैं बह जाऊँ
दिन जो पुराने थे
फिर से मैं जी जाऊँ

मन के पन्ने ऐसे ही उल्टा दिए
एक पन्ने पे तू भी मुझे देखे
याद है तू कल एक हक़ीक़त थी
आज है तू गुम से सवालों सी

मैं कुछ महसूस ना करूँ
मैं कुछ ऐसे सोचता रहूँ
तू दूर है कहीं
मैं जानूँ ना! पर सोचता

ओ राही, क्या कभी हम मिलेंगे?
ओ राही, क्या कभी हम भिड़ेंगे?
किसी रस्ते पे
किसी रस्ते पे

नफ़रत हो जाए मुझे
ऐसा तो ज़रूरी नहीं
जो तू साथ ना है
पर तू थी साथ कभी

बात है ये एक ज़माने की
पीछे मैं चलता तू आगे चलती थी
चलते-चलते ऐसे आगे बढ़ गए
दोनों के रास्ते ही बदल गए

मैं कुछ महसूस ना करूँ
मैं कुछ ऐसे सोचता रहूँ
तू दूर है कहीं
मैं जानूँ ना! पर सोचता

ओ राही, क्या कभी हम मिलेंगे?
ओ राही, क्या कभी हम भिड़ेंगे?
किसी रस्ते पे
किसी रस्ते पे

अब ये आँखें कभी मिलेंगी क्या?
मिल गईं फिर बातें चलेंगी क्या?
तेरी ज़िंदगी में क्या चल रहा?
कोई आया नया मेरी तरह?
ये सोचूँ, महसूस करूँ मैं

ओ राही, क्या कभी हम मिलेंगे?
ओ राही, क्या कभी हम मिलेंगे?



Credits
Writer(s): Vikram Rai
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