Aa Chalein Hum Kahin

ख़ाली इमारतों के, रंगीं बनावटों के
बाहर भी तो एक होगी दुनिया
रोज़ की शिक़ायतों के, दौहराती बातों के
शहर में अब तो कुछ ना रखा

आ चलें हम कहीं, बादलों के क़रीब
आ चलें हम कहीं, लहरों के क़रीब

ख़ाली दीवारों में, गुज़रे ज़मानों में
रहते हैं मैं और तुम क्यूँ भला?
ख़ुशियाँ कमाने से, ख़ुद को गवाने से
जो सोचा था वो भी ना मिला

आ चलें हम कहीं, बादलों के क़रीब
आ चलें हम कहीं, लहरों के क़रीब

कुछ ना बदले, कुछ ना रुके
शहर है ये ऐसा, हाँ
क्यूँ बरसों से, हैं हम यहाँ?
क्यूँ क़ैद हैं यहाँ? हाँ

आ चलें हम कहीं, बादलों के क़रीब
आ चलें हम कहीं, लहरों के क़रीब



Credits
Writer(s): Arnov Maggo
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