Nadi

वो बहती नदी है, जज़्बातों से गुज़रे
मैं बह जाऊँ उसमें तिनका सा
वो कहती मुझी से कि दूर-दराजे
एक ख़्वाब बसा है सच्चा सा

मैं कैसे कहूँ
कि रह जा तू मेरे लिए?
वो बह जाएगी कल
वो रुकती नहीं, बस चले

वो कहती मुझी से कि इश्क़ है तुमसे
ये छाँव तुम्हारी अच्छी है
वो कहती मुझी से कि चल ना
समंदर के लहरों पे चाँद छुएँगे

मैं कैसे कहूँ
कि कल को मैं चल ना सकूँ?
है मजबूरी मेरी
अब कैसे बयाँ मैं करूँ?

हाँ-हाँ, हाँ
हाँ-हाँ, हाँ

ये रात तो है ना
कि धीमे-धीमे यूँ ही बहना
इन होंठों पे बाक़ी हैं बातें
तुमसे है जो मुझको कहना
ये रात तो है ना
कि धीमे-धीमे यूँ ही बहना

वो बहती नदी है, कि सुबह-सवेरे
फ़िर से उसे बहना था
वो कहती मुझी से कि दूर-दराजे
एक ख़्वाब बसा है सच्चा सा



Credits
Writer(s): Arsh Akhtar
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