Taaro Ke Beech

वो चलना उस तरफ़
जिस तरफ़ मंज़िल उस शाम की
फ़ुर्सत की फ़िजाएँ
उन लमहों में आराम ही

वक़्त ही और वक़्त और क्या वो समा है?
ग़म भी मुस्काता, ये शाम जवाँ है

बस तुम हो और मैं हूँ और सब कुछ यहीं है
इन तारों के नीचे अब सब कुछ सही है

वो शाम रूकी जहाँ महक थी ख़ुशियों की ख़लिहानों की
मदहोश हुई हवाएँ और खूब सारी गानों की

तुम चलना बस साथ
हम ख़ो दें हाँ ख़ुद को
इस पल को अब जी लें
जो मिला है हमको

बस तुम हो और मैं हूँ और सब कुछ यहीं है
इन तारों के नीचे अब सब कुछ सही है

क्यूँ दर्द में ढूँढी हँसी?
तसल्ली है अब यही
इन तारों को आँखों से पाया
कुछ मुझमें, कुछ तुममें समाया

वो चलना उस तरफ़
जिस तरफ़ मंज़िल उस शाम की
फ़ुर्सत की फ़िजाएँ
इन लमहों में आराम ही

बस तुम हो और मैं हूँ और सब कुछ यहीं है
इन तारों के नीचे अब सब कुछ सही है



Credits
Writer(s): Arvind Kaushik
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