Hai Bahut Mashoor Ye Kissa, From ''Hai Bahut Mashoor Yeh Kissa''

है बहुत मशहूर ये क़िस्सा उमर फ़ारूक़ का
आज भी दुनिया में है चर्चा उमर फ़ारूक़ का

जब ख़िलाफ़त का शरफ़ हासिल हुआ फ़ारूक़ को
मोमिनों की फ़िक्र रहती थी सदा फ़ारूक़ को
काम आते थे हर एक मजबूर के हज़रत उमर
शौक़ से करते थे खुद हर एक की ख़िदमत उमर

फिरते-फिरते एक दिन पहुँचे उमर एक घर के पास
देखते क्या हैं, वहाँ बैठी है एक औरत उदास
डेगची चूल्हे पे थी और रो रहे थे उसके लाल
जब किया हज़रत उमर ने जा के औरत से सवाल

"रो रहे हैं किस लिए बच्चे? ये क्या है माजरा"
"भूख से रोते हैं ये बच्चे," ये औरत ने कहा
बोले हज़रत, "डेगची में पक रहा है क्या? कहो
किस लिए ग़मगीन हो? जो कुछ भी हो दुखड़ा कहो"

बोली वो औरत कि पानी से भरी है डेगची
क्योंकि मैं बच्चों को बहलाती हूँ इस सूरत से ही
उफ़, तरसते हैं ये बच्चे दाने-दाने के लिए
कुछ नहीं है मेरे पास इनको खिलाने के लिए

तीसरे दिन का है फ़ाक़ा मेरे बच्चों पर, हुज़ूर
मेरा कोई भी यहाँ वाली नहीं नज़दीक-ओ-दूर
रोए उस को देखकर इस हाल में हज़रत उमर
आ गए फ़ौरन ही बैतुलमाल में हज़रत उमर

आटा, कपड़ा, घी, छुहारे और रक़म लेकर उमर
ग़मज़दा औरत के घर की सीध दौड़े जल्द कर
पीठ पर देखा उमर के बोझ तो बोला ग़ुलाम
"बोझ उठाकर मुझ को चलने दीजिए, ऐ नेक नाम"

ये उमर बोले, "अगर ये बोझ मैं दे दूँ तुझे
हश्र के दिन क्या सज़ा देगा ना जाने रब मुझे"
दे दिया दुखिया को सब सामान लाकर आपने
और खिलाया सबको खुद खाना पकाकर आपने

खा लिया बच्चों ने और औरत ने खाना जिस घड़ी
हो गए हज़रत उमर खुश देखकर उनकी खुशी
आपको देकर दुआएँ फिर ये औरत ने कहा
"काश मिल जाता कोई हमको ख़लीफ़ा आप सा

हम ग़रीबों की उमर, कोई ख़बर रखते नहीं
ऐश में हैं मस्त, दुखियों पर नज़र रखते नहीं"
लेके उस दुखिया की बातों का असर हज़रत उमर
खामोशी से लौट आए अपने घर हज़रत उमर

सुबह उस औरत को फिर फ़ारूक़ ने बुलावा लिया
और वज़ीफ़ा उसका बैतुलमाल से जारी किया
होके शर्मिंदा उमर ने फिर ये औरत से कहा
"दुख बहुत पहुँचा है तुम को मेरी ग़फ़लत से सदा

तुम मुझे कर दो मुआफ़, इतनी है मेरी इल्तिजा
तुम जो मुझ को बख़्श दो तो बख़्श दे मुझ को खुदा"
सारी दुनिया में है चर्चा हर कहीं फ़ारूक़ का
कोई भी इंसाफ़ में सानी नहीं फ़ारूक़ का, कोई...



Credits
Writer(s): Iqbal Qureshi
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