Uljhe

वो पटरी पे पड़ी रोटियाँ
वो पाँव के छाले
कहीं भूखमरी की सिसकियाँ
सरकार की आँखों पर जाले

वो सैंकड़ों मीलों का सफर
बेग़रज़ शहरों से अपने गाँव तलक
वो टूटे से कंधो पे बच्चे और बूढ़े
सरकार, नेहरू को दुत्कारे

जात-पात में दीन-धर्म में
उलझे, उलझे, उलझे, उलझे
जात-पात में दीन-धर्म में
उलझे, उलझे, उलझे
जात-पात में दीन-धर्म में
उलझे, उलझे, उलझे, उलझे
जात-पात में दीन-धर्म में
उलझे, उलझे, उलझे, उलझे, हो

वो बिस्कुट के पैकेट के पीछे छीना झपटी
तार-तार हुए कितनो के स्वाभिमान
ट्रको और सीमेंट मिक्सरो में लदी
मजबूर, बेबस, जिंदा लाशें बेजान
लो आत्मनिर्भर हो चला ये देश महान

वो पैसे की किल्लत
गरीब होने की ज़िल्लत
माँ के आँचल तले
उजड़े सपने बिटिया के, हो

हम क्यों जात-पात में दीन-धर्म में
उलझे, उलझे, उलझे, उलझे
जात-पात में दीन-धर्म में
उलझे, उलझे, उलझे
जात-पात में दीन-धर्म में
उलझे, उलझे, उलझे, उलझे
जात-पात में दीन-धर्म में
उलझे, उलझे, उलझे,
रे उलझे, उलझे, उलझे, उलझे,
उलझे, उलझे, उलझे, उलझे, बन्धु
ऐ बन्धु



Credits
Writer(s): Anita Singh, Sharad Joshi
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