Goomnaam Si

गुमनाम सी, चाहतें हैं कई
अंधेरों में कहीं गुम है पड़ी
गुमनाम सी, आहटें 'गर तेरी
हो अगर जो रही तो फिर सुनी क्यूँ नहीं?
गुमनाम सी

जाऊँ मैं अब कहाँ? तू ही बता
मंज़िल नहीं, ना कोई रास्ता!
तो, जाऊँ मैं अब कहाँ? तू ही बता
मंज़िल नहीं, ना कोई रास्ता!

गुमनाम सी (गुमनाम सी) ख़्वाहिशों में तेरी
मैं भी हूँ 'गर कहीं तो फिर दिखा क्यूँ नहीं?
गुमनाम सी

ये रातें भी गुज़रती नहीं
और बातें भी अधूरी पड़ी
ना चाह के भी, मैं चाहूँ तुझे
ये बातें तू समझती नहीं

गुमनाम सी
रोशनी है मेरी अंधेरों में कहीं गुम हो चली
गुमनाम सी



Credits
Writer(s): Sanam Malik
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