Kalabaaziyan

अकेला वो सड़क के किनारे खड़ा बेचता
झुके ना एक लड़कपन उसे जो कभी ना मिला

"घर मेरा कहाँ", बस यही कहे
पेट भर सकूँ इसलिए कर रहा

कलाबाज़ियाँ, कलाबाज़ियाँ
कलाबाज़ियाँ, कलाबाज़ियाँ

हम आज फ़िर चले पड़े हैं
देखे बिना किन अँधेरों की ओर
दिन है वही, हैं वही लोग
देखे ना मुड़कर कभी ना मेरी ओर

है बिख़र रहा बस नहीं कहे
एक बन सकूँ इसलिए कर रहा

कलाबाज़ियाँ, कलाबाज़ियाँ

ख़ुशी ने है फ़िर भी उसे कहीं से ढूँढ लिया
भले क़िस्मतों ने उसे भरी राह छोड़ दिया

वो चले जहाँ रुके वहाँ मस्ख़री करे
गिर-सँभर के भी मस्तियों में कर रहा

कलाबाज़ियाँ (कलाबाज़ियाँ), कलाबाज़ियाँ
कलाबाज़ियाँ, कलाबाज़ियाँ



Credits
Writer(s): Aditya Kalway
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