Shree Krishna Govind Hare Murari - 2

यस्मिन् स्थितः जगतसर्वम साजननि गर्भेस्थितः
निराकारः अजन्मायो सो वई साकार मागतः
भवात्मुक्तः भवेमुक्तिं जन्म मृत्योर्कारणम्
सा युज्जयमोक्षदाता च अनुभवार्थम् भवोऽद्भवः

(श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी)
(हे नाथ नारायण वासुदेवा)
(श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी)
(हे नाथ नारायण वासुदेवा)

(पितु-मात, स्वामी, सखा हमारे)
पितु-मात, स्वामी, सखा हमारे
(हे नाथ नारायण वासुदेवा)

(श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी)
(हे नाथ नारायण वासुदेवा)

तुम में वास करे जग सारा
तुम जननी के गर्भ मँझारा
नाथ चतुर्भुज अतर्यामी
अति विराट त्रिभुवन के स्वामी
(अति विराट त्रिभुवन के स्वामी)

(सूक्ष्म रूप धरीं गर्भ पधारे)
सूक्ष्म रूप धरीं गर्भ पधारे
(हे नाथ नारायण वासुदेवा)

(श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी)
(हे नाथ नारायण वासुदेवा)

(हरे कृष्णा, हरे कृष्णा, कृष्णा-कृष्णा, हरे-हरे)
(हरे कृष्णा, हरे कृष्णा, कृष्णा-कृष्णा, हरे-हरे)
(हरे कृष्णा, हरे कृष्णा, कृष्णा-कृष्णा, हरे-हरे)
(हरे कृष्णा, हरे कृष्णा, कृष्णा-कृष्णा, हरे-हरे)
(हरे कृष्णा, हरे कृष्णा, कृष्णा-कृष्णा, हरे-हरे)



Credits
Writer(s): Ravindra Jain
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