Saaz-E-Dil

बातों बातों में,
ये शाम ढल गई।
इशारों में ही,
मोहब्बतें हुईं।

खुमार बाखुदा
आया ऐसा ना कभी।
समा में नशा,
छाया था ना ऐसा कभी।

साज़-ए-दिल कौनसी धुन गा रहा?
मुझसे मेरा ख्वाब नींद क्यों चुरा रहा?
ये दिल लापता, तू इतना बता, क्या तुझमें है ये बसा?
खुला आसमां, पिघलता जहां, दीवाना अकेला यहां।

टिमटिमाते तारों से,
रात है सजी।
मंजिलें मिलेंगी,
रास्ते हैं राज़ी।

फिज़ा ने कहा, लहरों ने भी ये दावा किया।
हज़ारों दफा इश्क़ होना नही है यहां।

साज़-ए-दिल कौनसी धुन गा रहा?
मुझसे मेरा ख्वाब नींद क्यों चुरा रहा?
ये दिल लापता, तू इतना बता, क्या तुझमें है ये बसा?
खुला आसमां, पिघलता जहां, दीवाना अकेला यहां।



Credits
Writer(s): Akash Upadhyay
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