Inaayat

मेरी ये दोनों आँखें, ढूँढें तुझी को ऐसे
जैसे है तुझसे ही अब वास्ता
दूरी ना तेरे-मेरे दरमियाँ यूँ चाहूँ
फिर भी ना जाने क्यूँ है फ़ासला

पर ना मेरी है ज़मीं, ना मेरा आसमाँ
मैं जाऊँ जहाँ भी, मैं देखूँ तुझी को
ये कैसा नशा सा?

तू मेरी ही थी, और मेरी ही रहे
मैं जाऊँ जहाँ भी, दुआएँ ये माँगूँ
हमेशा यूँ रोज़ाना

जागा रहा तेरी यादों में मैं
जाऊँ जहाँ वहाँ पाऊँ तुझे
जुड़ी तुझी से हर ख़्वाहिशें
मेरी इनायत तू

जागा रहा तेरी यादों में मैं
जाऊँ जहाँ, पाऊँ तुझे
जुड़ी तुझी से हर ख़्वाहिशें
मेरी इनायत तू

मेरी इनायत तू

मेरी इनायत तू

मुझमें समाए तू और तेरा मैं हूँ ऐसे
जैसे उन बादलों का आसमाँ
जिन कहानियों में मौजूदगी ना तेरी
फ़ीकी हर एक वो दास्ताँ, और...

तू मेरी है राही, सुन मेरी ज़ुबानी
मैं जाऊँ जहाँ भी, मैं देखूँ तुझी को
ये कैसी कहानी?

मेरा कुछ भी नहीं था, मैं था यूँ अकेला
भूला सारे ग़मों को
जो मेरे जहाँ में तू लाया सवेरा

जागा रहा तेरी यादों में मैं
जाऊँ जहाँ वहाँ पाऊँ तुझे
जुड़ी तुझी से हर ख़्वाहिशें
मेरी इनायत तू

जागा रहा तेरी यादों में मैं
जाऊँ जहाँ, पाऊँ तुझे
जुड़ी तुझी से हर ख़्वाहिशें
मेरी इनायत तू

मेरी इनायत तू

मेरी इनायत तू

सर पे चढ़ी है तू कुछ अब यूँ मेरे
बातें तेरी ग़लत भी अब सही लगें
कहती है तू ना है कोई परी, मगर
मुझको तो जन्नत तेरा घर लगे



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