Sher Shivraj

साजि चतुरंग वीर रंग में तुरंग चढ़ि
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत हैं
भूषण भनत नाद विहद नगारन के
नदी नद मद गैबरन के रलत है

ऐल फैल खैल-भैल खलक में गैल गैल
गजन की ठैल पैल सैल उसलत हैं
तारा सो तरनि धूरि धारा में लगत जिमि
थारा पर पारा पारावार यों हलत हैं

बाने फहराने घहराने घण्टा गजन के
नाहीं ठहराने राव राने देस देस के
नग भहराने ग्रामनगर पराने सुनि
बाजत निसाने सिवराज जू नरेस के

हाथिन के हौदा उकसाने कुंभ कुंजर के
भौन को भजाने अलि छूटे लट केस के
दल के दरारे हुते कमठ करारे फूटे
केरा के से पात बिगराने फन सेस के

इन्द्र जिमि जंभ पर बाडब सुअंभ पर
रावन सदंभ पर रघुकुल राज हैं

पौन बारिबाह पर संभु रतिनाह पर,
ज्यौं सहस्रबाह पर रामद्विजराज हैं

दावा द्रुम दंड पर चीता मृगझुंड पर
भूषन वितुंड पर जैसे मृगराज हैं

तेज तम अंस पर कान्ह जिमि कंस पर
त्यौं मलिच्छ बंस पर सेर शिवराज हैं



Credits
Writer(s): Kavi Bhushan, Krushna Deva
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