HABEEB

कभी यूँ भी आ मेरी आँख में के मेरी नज़र को ख़बर न हो
कभी यूँ भी आ मेरी आँख में के मेरी नज़र को ख़बर न हो
मुझे एक रात नवाज़ दे मगर उसके बाद सहर न हो
कभी यूँ भी आ मेरी आँख में

मेरे पास मेरे हबीब आ ज़रा और दिल के क़रीब आ
मेरे पास मेरे हबीब आ ज़रा और दिल के क़रीब आ
तुझे धड़कनों में बसा लूँ मैं के बिछड़ने का कोई डर न हो
कभी यूँ भी आ मेरी आँख में

कभी धूप दे कभी बदलियाँ दिल ओ जाँ से दोनों क़ुबूल हैं
कभी धूप दे कभी बदलियाँ दिल ओ जाँ से दोनों क़ुबूल हैं
मगर उस नगर में न क़ैद कर जहाँ ज़िन्दगी की हवा न हो
कभी यूँ भी आ मेरी आँख में के मेरी नज़र को ख़बर न हो
मुझे एक रात नवाज़ दे मगर उसके बाद सहर न हो

कभी यूँ भी आ मेरी आँख में



Credits
Writer(s): Bashir Badr
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