Zakhm Dete Ho

जब कहा था मोहब्बत गुनाह तो नहीं
फिर गुनाह के बराबर सज़ा क्यूँ मिली?
ज़ख़्म देते हो, कहते हो सीते रहो
जान लेकर कहोगे के जीते रहो
प्यार जब-जब ज़मीं पर उतारा गया
ज़िंदगी तुझको सदके में वारा गया

प्यार ज़िंदा रहा मक़्तलों में मगर
प्यार ज़िंदा रहा मक़्तलों में मगर
प्यार जिसने किया है वो मारा गया

हद यही है, तो हद से गुज़र जाएँगे
हद यही है, तो हद से गुज़र जाएँगे
ये मोहब्बत में निकली हुई फ़ाल है
इश्क़ तो लाल है, इश्क़ तो लाल है
दिल की रग-रग से टपका हुआ है लहू
दिल की रग-रग से टपका हुआ है लहू



Credits
Writer(s): Imran Raza
Lyrics powered by www.musixmatch.com

Link