Bann Gayi Zindagi

चट भी मेरी, पट भी मेरी
सब पाने की ज़िद भी मेरी
चट भी मेरी, पट भी मेरी
सब पाने की ज़िद भी मेरी

बन गई, बन गई
बन गई मेरी ज़िंदगी

सपनों के थे पन्ने बड़े
पूरे करे, फिर से भरे

रुकना, रुकना
रुकना है हरगिज़ अब नहीं

बन गई मेरी ज़िंदगी

बरसों से बंद पिंजरे में पंख खुल रहे हैं
बादल चख-चख मीठे रस में घुल रहे हैं
बरसों से बंद पिंजरे में पंख खुल रहे हैं
बादल चख-चख मीठे रस में घुल रहे हैं

अब ख़्वाहिश ढीठ बड़ी है, झुकती नहीं है
मंज़िल अब सीढ़ी चढ़ के रुकती नहीं है

तेरे हुकुम से ऊपर वाले अभी
खोले क़िस्मत ने ताले सभी
तेरे हुकुम से ऊपर वाले अभी
खोले क़िस्मत ने ताले सभी

बन गई, बन गई
बन गई इसकी, बन गई उसकी
बन गई मेरी ज़िंदगी

(बन गई मेरी...)
(बन गई मेरी...)



Credits
Writer(s): Bhuvan Bam
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