Sham

शाम भी कोई जैसे है नदी
लहर लहर जैसे बह रही है
कोई अनकही कोई अनसुनी
बातें धीमे धीमे कह रही है

कहीं ना कहीं जागी हुई है कोई आरज़ू
कहीं न कहीं खोये हुए से हैं मैं और तू

के बूम बूम बूम पारा पारा
हैं खामोश दोनों
के बूम बूम बूम पारा पारा
हैं मदहोश दोनों

जो गुमसुम गुमसुम हैं ये फ़िज़ाएं
जो कहती सुनती हैं ये निगाहें
गुमसुम गुमसुम हैं ये फ़िज़ाएं, हैं ना



Credits
Writer(s): Javed Akhtar, Amit Trivedi
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