Sadhu

भीड़ के आघात
सहकर
मुस्कुराया
मैं
हिन्दू अब तक
सो रहे
क्या हूँ
पराया
मैं
भीड़ के आघात
सहकर
मुस्कुराया
मैं
हिन्दू अब तक
सो रहे
क्या हूँ
पराया मैं
यहाँ साधु की
हत्या
हुई
पर सृष्टि
सोई
रही
क्यों न्याय की
आशा में बस
मातम की
छाया रही
मातम की
छाया रही
मातम की
छाया रही
भीड़ के
आघात सहकर
मुस्कुराया मैं
हिन्दू अब तक
सो रहे
क्या हूँ पराया
मैं
भीड़ के
आघात सहकर
मुस्कुराया
मैं
हिन्दू अब तक
सो रहे
क्या हूँ
पराया मैं
सदैव सरल
स्वभाव मेरा
मैं तपस्वी
जीवन
जीता था
वस्त्र भगवा
खादी के
वाणी में रखता
गीता था
क्या मुझसे कोई
भूल हुई
या फिर
अपराध
हुआ
भगवा धारी
की मृत्यु पर
क्यों क्षण भर
संवाद
हुआ
क्यों क्षण भर
संवाद
हुआ
क्यों क्षण भर
संवाद
हुआ
भीड़ के
आघात सहकर
मुस्कुराया
मैं
हिन्दू अब तक
सो रहे
क्या हूँ
पराया
मैं
भीड़ के
आघात सहकर
मुस्कुराया
मैं
हिन्दू अब तक
सो रहे
क्या हूँ
पराया मैं
(पराया मैं)
तुम
सो रहे हो
धर्म को
खो रहे हो
मौन साधे
आधे
हो रहे हो
अतीत में भी
नम
नयन थे
भविष्य में भी
तुम
रो रहे हो
मुझे देखकर
न जागे
तुम
एक दिन
जग
जाओगे
तब टूटेगी
क्या नींद
तुम्हारी
जब
तुम
मिट जाओगे
जब
तुम
मिट जाओगे
भीड़ के
आघात सहकर
मुस्कुराया
मैं
हिन्दू अब तक
सो रहे
क्या हूँ
पराया
मैं
भीड़ के
आघात सहकर
मुस्कुराया
मैं
हिन्दू अब तक
सो रहे
क्या हूँ
पराया मैं



Credits
Writer(s): Milind Panwar
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