Sarswati Amritwani

सुरमय वीणा-धारिणी, सरस्वती कला-निधान
पावन आशीष से कर दे जन-जन का कल्याण
विद्या बोध स्वरूपिणी, मन-मोहक तेरा रूप
हर ले निशा अज्ञान की, ज्ञान की देकर दूप

शारदे माँ सुरेश्वरी, कर दुखों का अंत
ज्योतिर्मय है जगत में महिमा तेरी अंनत
त्रिभुवन में है गूँजता मधुर तेरा संगीत
दिव्य आकर्षण है लेता शत्रु का मन जीत

जय, हो, सरस्वती माँ
जय, हो, सरस्वती माँ

देवी ज्ञान-विज्ञान की, कष्ट हरण तेरा जाप
तेरे उपासक को छुवे कभी न दुख संताप
कला-निधि करुणेश्वरी, करुणा कर दे आपार
कलह, कलेश न हो यहाँ, सुखमय हो संसार

सात सुरों के स्वामिनी, सातों रंग तेरे पास
अपने साधक की करना पूर्ण हर एक आस
श्री नारायण की, प्रिय, प्रीत की पुस्तक खोल
पीड़ित पा जाए शांति, वाणी मनोहर बोल

जय, हो, सरस्वती माँ
जय, हो, सरस्वती माँ

बुद्धि और विवेक का दे सबको उपहार
सर्व कलाओं से, मैया, भरे तेरे भण्डार
परम योग स्वरूपिणी, मोहक-मन की हर
सर्व गुणों के रत्नों से घर साधक का भर

कला में दे प्रवीणता, जग में बढ़ा सम्मान
तेरे अनुग्रह से बनते अनपढ़ भी विद्वान
भगतों के मन-पटल पर अंकित हो तेरा नाम
हर एक कार्य का मिले मनवांछित परिणाम

जय, हो, सरस्वती माँ
जय, हो, सरस्वती माँ

तेरी अनुकम्पा से होता प्रतिभा का विकास
ख्याति होती विश्व में, जीवन आता रास
हंस के वाहन बैठ के, प्रिये, जगत में घूम
दसों दिशाओं में मची तेरे नाम की धूम

स्मरण शक्ति दे हमें, जग की सृजनहार
तेरे कोष में क्या कमी, तूम हो अपरंपार
श्वेत-कमल के आसन पर मैया रही विराज
तेरी साधना जो करे, सिद्ध करे उनके काज

जय, हो, सरस्वती माँ
जय, हो, सरस्वती माँ



Credits
Writer(s): Traditional, Kishore Komal
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