Gham Badhe Aate Hain Qatil Ki Nigahon Ki Tarah

ग़म बढे़ आते हैं क़ातिल की निगाहों की तरह
तुम छिपा लो मुझे ऐ दोस्त, गुनाहों की तरह

अपनी नज़रों में गुनाहगार न होते, क्योंकर
दिल ही दुश्मन हैं मुख़ालिफ़ के गवाहों की तरह



Credits
Writer(s): Sudarshan Faakir
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