Muntazir

इन अखियों में पढ़ गई झाई
पर देखा न तेरी परछाई
रास्ता तक-तक के थक गये
पल -पल कर कितना रुक गये
शयाद तुझको न याद मेरी आई
पर देखा न तेरी परछाई
माहियावे माहियावे माहियावे माहियावे
मेरे दिल में है कितना तुफान
जा जा के तु उनको सुना
मुझे छू कर बहे जो हवा
तेरी खातिर नहीं कुछ मना
दिल की मेरी तुम कहना
मुझको तनहा नहीं रहना
तंग करने लगी है अब जुदाई
पर देखा न तेरी परछाई
सोढ़ियावे सोढ़ियावे सोढ़ियावे सोढ़ियावे
इन अंखियों में आँसू के धारे
मेरे अरमान मुझसे कुँवारे
रह तेरी ही निहारा करेंगे
जब तलाक जान मुँह में हमारे
यादों में तेरे खोई अखियाँ है सोई-सोई
अब डसने लगी है तनहाई
पर देखा न तेरी परछाई



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