Ajab Ek Pagal Si Ladki Hai

अजब एक पागल सी लड़की है
अजब एक पागल सी लड़की है
मुझे हर ख़त में लिखती है

"बताओ, तुम मुझे पहले के जैसे प्यार करते हो?
तुम्हें हर वक़्त क्या अब भी मेरी यादें सताती हैं?
नज़ारों में तुम्हें दिखती हैं क्या परछाइयाँ मेरी?
तुम्हें क्या शाम को अब भी मेरी बाँहें बुलाती हैं?"

अजब एक पागल सी लड़की है

"तुम्हारी आँख में छुपकर क्या मेरा ख़ाब रहता है?
तुम्हारा दिल अभी तक क्या मेरी ख़ातिर धड़कता है?
तुम्हें ख़ामोशियों में क्या मेरी आवाज़ आती है?
अँधेरों में अभी तक क्या मेरा चेहरा चमकता है?"

अजब एक पागल सी लड़की है

मैं कहता हूँ, "मैं उलझा हूँ ग़म-ए-दुनिया में कुछ ऐसा
ना अब वो दिल ही बाक़ी है, ना अब वो धड़कनें बाक़ी
सहर से शाम तक जीवन में इतना शोर रहता है
ना वो ख़ामोशियाँ बाक़ी, ना अब वो आहटें बाक़ी
मैं चाहूँ भी तो तुमको याद करने की नहीं फ़ुर्सत
बड़ा मसरूफ़ है हर-पल, कहाँ मिलती है ये मोहलत"

वो फिर से पूछती है, "क्या भुला डाला मुझे तुमने?
वो एक मासूम सा रिश्ता जला डाला उसे तुमने?"

अजब एक पागल सी लड़की है

मैं कहता हूँ, "जहाँ कि आग में सबकुछ जला, लेकिन
तुम्हारा ख़ाब आँखों में पड़ा है अध-जला, लेकिन
मैं तुमको भूल जाने का यक़ीं ख़ुद को दिलाता हूँ
तुम्हारे बिन भी हूँ ज़िंदा, यही सबको बताता हूँ
मगर, आँखों में रहता है तुम्हारे नाम का आँसू
हर एक महफ़िल में यूँ तो मैं हमेशा खिलखिलाता हूँ"

अजब एक पागल सी लड़की है

"मेरे दिल के हर एक कोने में अब तक तू धड़कती है
कोई भी फूल देखूँ मैं तो उसमें तू महकती है
तेरे ही ख़ाब के जुगनू मेरी पलकों पे आते हैं
तेरी ही याद रातों में सितारों सी चमकती है

है जिनको तजुर्बा उलफ़त का, वो हमको बताते हैं
जिन्हें हम भूलना चाहें, वो अक्सर याद आते हैं
हुनर यूँ तो ज़माने में मुझे क्या कुछ नहीं आया
तुम्हें मैं भूल जाऊँ, बस यही जादू नहीं आया"

तुम्हें मैं भूल जाऊँ, बस यही जादू नहीं आया



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