ढिप्पी

चाँद कितनी कोशिश क्यों न करे, वह रात को दिन नहीं बना सकता। लेकिन आदमी हँसता है, दुख-दर्द सभी में आदमी हँसता है। जैसे हँसते-हँसते आदमी की प्रसन्नता थक जाती है वैसे ही कभी-कभी रोते-रोते आदमी की उदासी थक जाती है और आदमी करवट बदलता है। ताकि हँसी की छाँह में कुछ विश्राम कर फिर वह आँसुओं की कड़ी धूप में चल सके।

-धर्मवीर भारती, गुनाहों का देवता



Credits
Writer(s): Harul Vinay
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