Mazaak

ये भी मज़ाक ही तो है
सालों से सड़कों पे सँभल के चल रहा था यूँ
गालों के गड्ढों में तेरे
ना जाने क्यूँ मैं लड़खड़ा के गिर गया हूँ

मुस्कराओ
और ऐसे हँसो मेरी बातों पे
गिरता रहूँ तेरी राहों में
और इनमें ही खो जाऊँगा

ये भी मज़ाक ही तो है
कैसे ये रातों के इरादों में अँधेरा था यूँ
आधे से चाँद सी हँसी
अँधेरी रातों में अब नूर बन गई क्यूँ?

ऐ, चाँद
अब चाँदनी बनके गिरो ज़रा
गिरते रहो मेरे आस-पास
तो तेरा ही हो जाऊँगा

हो जाऊँगा तेरा, एहसास है
साँसें हैं जब तक यहाँ, हो जाऊँ मैं तेरा
ये ना मेरा अंदाज़ है
देखो, मैं ख़ुद हँस रहा अपनी बातों पे यहाँ

ऐसे तुम भी हँसो मेरी बातों पे
ना जाने ये क्या हो रहा मुझे
मैं तेरा ही हो जाऊँगा, हो जाऊँगा

ये भी मज़ाक ही तो है
मेरी नक़ल है या असल में गिर रहे हो तुम भी?
होता नहीं है अब यक़ीं
क्या ये मज़ाक तो नहीं?



Credits
Writer(s): Anuv Jain
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