Mehmaan

क्यूँ ही है यूँ तू
परेशान
क्या ही है ये लम्हा
एक भोला सा
मेहमान

एक दिन रह जाएगा
तेरी यादों में बन के
ये सिलसिला
ज़िन्दगी है बड़ी
कब तक होगा ख़फ़ा

क्यूँ ही होना ख़फ़ा

एक दिन रह जाएगा
तेरी यादों में बन के
ये सिलसिला
ज़िन्दगी है बड़ी
कब तक होगा ख़फ़ा

क्यूँ होना खफा

और एक दिन ऐसा
आया जैसे
कोई बादल मेरे क़दमों में आ हो रुका

और दूजे ही पल
मुझे ऐसा लगा
जैसे दलदल सा है ये सारा जहाँ

फिर आँखें खुली
और कुछ नहीं था
कुछ पल और गुज़रे
फिर सब सही था

एक दिन रह जाएगा
सबकी यादों में बन के
तू सिलसिला
ये ज़िन्दगी है छोटी
कब तक होगा ख़फ़ा

क्यूँ ही होना ख़फ़ा
क्यूँ ही होना ख़फ़ा



Credits
Writer(s): Nishant Mittal
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