Zindagi

क्या पता
क्यूँ हुआ ऐसा दर्द का
कुछ तो है मुझसे वास्ता
पा के यूँ तुझको था
खोया
था ख़फ़ा
वक्त क्यूँ मुझसे बेपनाह
तुझको चाहा था लापता
हो गया खुद से यूँ
साया

ये ज़िंदगी का गोल सा ये चक्कर जो था
जहां शुरू हुआ आज वहीं ठहर गया
हो गया है आज वो कभी जो होना ही था
जो क़समें दी थी मैंने तुझको सब ठहर गया
ये ज़िंदगी का गोल सा ये चक्कर जो था
बेगुनाही में मुझे क्यूँ गुना है दे दिया
जो कल करे थे वादे तूने सब भुला दिया
बेवफ़ाई में था तूने मुझको यह सिला दिया

क्यूँ भला
खुद से रूठ था ख़ाब जो
ऐसे टूटा था क्यूँ भला
वक्त पानी था दर्द
था साया

जल जल के जीता हूँ खुद में ही रहता हूँ
धुंधली उन्न यादों को बटोर की मैं रखता हूँ
माँगा था दुआ में तुझको दर्द ही मिला क्यूँ मुझको
गलियों से मैं गुज़रा पर नज़र भी ना मिलायी मुझसे

ज़िंदगी का गोल सा ये चक्कर जो था
जहां शुरू हुआ आज वहीं ठहर गया
हो गया है आज वो कभी जो होना ही था
जो क़समें दी थी मैंने तुझको सब ठहर गया

बातें जो अधूरे थे वो आज भी अधूरे हैं
जो हाथ की लकीरें थी हाँ दर्द जिन्मे पूरे हैं
था रात के अंधेरे में अकेले सब के घेरे में
जो बेज़ुबान यादें थी वो याद भी अधूरे हैं

बातें जो अधूरे थे वो आज भी अधूरे हैं
जो हाथ की लकीरें थी हाँ दर्द जिन्मे पूरे हैं
था रात के अंधेरे में अकेले सब के घेरे में
जो बेज़ुबान यादें थी वो याद भी अधूरे हैं



Credits
Writer(s): Afroz Jahan
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