Soch

(जो सोचा कभी वो होता नहीं)
(होता वही जो सोचा...)

जो सोचा कभी वो होता नहीं
होता वही जो सोचा नहीं
एक नज़्म लिखी थी किसी के लिए
किसके लिए वो तो सोचा ही नहीं

मोड़ है ये कितना हसीं
आगे क्या होगा, कुछ सोचा नहीं
ख़ुद से दूर सोच में यूँ
भूल गए सब जीना क्यूँ ही?

किताबें कई हैं मेरे अफ़सानों की
...मेरे अफ़सानों की
कोई ख़बर ना मेरे अंजामों की

सोच पे मेरी कई इल्ज़ाम हैं
...कई इल्ज़ाम हैं
सुन ले मेरी ये तो क्या बात है

हर शख़्स यहाँ किस खोज में है?
आगे क्या होगा, उस सोच में है
जो सोचा कभी वो होता नहीं
होता वही जो सोचा नहीं

मोड़ है ये कितना हसीं
आगे क्या होगा, कुछ सोचा नहीं
ख़ुद से दूर सोच में यूँ
भूल गए सब जीना क्यूँ ही?



Credits
Writer(s): Ramil Ganjoo
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