Aarti Saraswati Maa

. वंदना .
जनक जननि पद कमल रज, निज मस्तक पर धारि
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु
रामसागर के पाप को, मातु तुही अब हन्तु

. आरती .
आरती करूं सरस्वती मातु
हमारी हो भव भय हारी हो
हंस वाहन पद्मासन तेरा
शुभ वस्त्र अनुपम है तेरा
रावण का मान कैसे फेरा
वर मांगत बन गया सबेरा
यह सब कृपा तिहारी हो
उपकारी हो मातु हमारी हो
तमोज्ञान नाशक तुम रवि हो
हम अंबुजन विकास करती हो
मंगलभवन मातु सरस्वती हो
बहुकुकन बाचाल करती हो
विद्या देने वाली वाणी धारी हो
मातु हमारी हो।।
तुम्हारी कृपा गणनायक
लायक विष्णु भये जग के पालक
अम्बा कहायी सृष्टि ही कारण
भये शम्भु संसार ही घालक
बंधौ आदि भवानी जग
सुखकरी हो मातु हमारी हो
सद्बुद्धि विद्याबल मोहि दीजै
तुम अज्ञान हटा रख लीजै
जन्मभूमि हीत अर्पण कीजै
कर्मवीर भस्महिं कर दिजै
ऐसी विनय हमारी
भवभयहारी हो
मातु हमारी हो
मातु हमारी हो।।



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